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#हिंदी_दिवस विशेष लेख : हिंदी भाषा सांसारिक संकुल का वो हिस्सा है जिसे भाषीय विविधता के षड्यंत्रों के मध्य उपस्थित होते हुए भी सर्वोपरि माना जाता है। हिंदी एक भाषा होने से संग-संग हमारा कुटुंबकीय अनुराग है, जिसकी हमें सदैव अनुभूति होती रहती है। कुछ लोगों का कहना है कि हिंदी भाषा को हमारे संबल की आवश्यकता है। किंतु मैं इस वाक्य से सौ प्रतिशत असहमत हूँ। मेरा मानना है कि जिस जननीभाषा के कारण हम अपने बाल्यकाल में जागृत मानसिक भावों को शब्द दे पाते हैं, तो उस भाषीय माँ को हम संबल देने की मूढ़तापूर्ण चेष्टा कैसे कर सकते हैं। हाँ, इतना अवश्य कर सकते हैं कि जब तक अनिवार्य ना हो तब तक विदेशी भाषाओं को नकारते रहें और उस स्थान पर हमारी हिंदी को प्रथमता दें। हम अपने बच्चों को उन विद्यालयों में पढ़ाएं जहाँ पर हिंदी के महत्व को समझा जाता हो। बच्चों के हिंदी साहित्य के प्रति आकर्षण हेतु उन्हें टीवी कार्टून की जगह दिनकर जी की रश्मिरथी सुनने और पढ़ने को कहें। आज के युवा निम्नस्तरीय अवसाद की अवस्था में जीते - जीते कब आत्महत्या की देहरी पर पहुँच जाते हैं कुछ पता नही चलता। मैं पूर्ण दावे के साथ कहता हूँ कि हमारे हिंदी साहित्य में ऐसे सैकड़ों प्रेरक गीत लिखे जा चुके हैं जिन्हें पढ़कर या सुनकर वो युवा आत्महत्या करने की सारहीन मानसिकता का त्याग कर सकते हैं। सबसे विशेष बात यह हैं कि जहाँ समाज में प्रचलित अन्य भाषाओं के व्याकरण और उच्चारण में अत्यंत बनावटीपन महसूस होता है वहीं हमारी हिंदी सदियों से अपनी वास्तविकता और शुद्धता के लिए जानी जाती है। हमारी हिंदी के उच्चारण में किसी भी प्रकार से जिव्हा एवं ओष्ठ में तनाव लाने की आवश्यकता नही होती। एक हिंदीभाषी कवि होने के नाते आज हिंदी दिवस पर हिंदी कविता के अस्तित्व का बोध कराने हेतु कविता की शब्दशः परिभाषा के रूप में एक गीत... जब जब सन्नाटे चीखे हैं जब जब छाए हैं अंधियारे जब जब दुनिया की नजरों में हम हुए बेचारे दुखियारे जब शून्य पुरुष निर्बलता का आभास कराने आते हो जब जब अनपढ़ और अज्ञानी अभ्यास कराने आते हो जब संख्याओं के संगम पर बेमोल बिके अनिवार्य अंक जब जब पानी स्याही जैसे माथे का बन जाए कलंक जब-जब पागलपन शून्य हुआ हाँ तब तब गाई है कविता होठों पर आई है कविता, होठों पर आई है कविता क़दमों को कई कलाएँ दी, वो ही अंगनाई है कविता बहना का अनोखा प्यार लिए भाई की कलाई है कविता जब प्रेम प्रेम से पृथक हुआ तब तब अकुलाई है कविता मां के हाथों वाले स्वेटर की ऊन सलाई है कविता जब जब सपनों पर धुंध चढ़ी, तब तब गहराई है कविता मिथ्या के इस परिवेश बीच दुबकी सच्चाई है कविता संकट जब जब सम्मुख आये, अधरों पे सजाई है कविता होठों पर आई है कविता, होठों पर आई है कविता छंदों में समाई है कविता, पावन चौपाई है कविता रातों की नींदों के बदले, अनमोल कमाई है कविता हिंदी भाषा को विश्व पटल पर लेकर आई है कविता अंग्रेजों पर रानी लक्ष्मी बाई की चढ़ाई है कविता आधुनिक मनोरंजन में भी, जन - जन को भाई है कविता मन है प्रसन्न, मेरे जीवन की स्वर्णिम ईकाई है कविता माना शिखरों पर हूं लेकिन, शिखरों की राई है कविता होठों पर आई है कविता, होठों पर आई है कविता

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  • Trương Thị Hồng
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    • 2 năm trước
    • Rajput Rachit
      Rajput Rachit
      प्रिय भाई... बहुत शुभकामनायें
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      • 2 năm trước
      • Padhiyar Danavarsh
        Padhiyar Danavarsh
        बहुत सुन्दर हमें आप से यही उम्मीद है कि आप और सुन्दर प्रस्तुती प्रस्तुत करें।
        • Haha

        • Trả lời
        • 2 năm trước
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