Jyoti Rani
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एक वक्त था मैं चीजों के छूटने से बहुत घबरा जाती थी । लोग हों या रिश्ते मैं पकड़े रखती थी उन्हें खोने नही देना चाहती थी । फिर एक वक्त आया जब जीवन में कि जोड़ा हुआ सब कुछ चला गया।
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पतझड़ पूरी तरह बीत नही पाया
और बसंत बेतरतीब दस्तक देने लगा है
जंगल में पेड़ों पर पीले पड़ते पत्ते
अभी तो झड़ भी नही पाए हैं
और फ्योंली और बुरांस खिलने लगे हैं
बर्फ़ की राह ताकते बेबस पहाड़
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If i had not been connected to the nature
This Worldly life would have suck me to death. Living to love
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पढ़ लेगा कोई रात की रोई हुई आँखें
हर सम्त हैं आराम से सोई हुई आँखें
- आमीर अज़हर
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